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अहिंसा नगवती श्री जीवदया ऐसा लिखा है. हां! कहीं किसी टोकाकारने गपोमा लगा दिया हो तो हमें खबर नहीं. हम लोग तो सूत्र से और सम्बन्ध से मिलता हुआ टीका टब्बा मानते हैं. जो मूल सुत्र के अभिप्राय को धक्का देनेवाला उमोउम अर्थ हो, उसे नहीं मानते हैं. यथा पद्मपुराण में शलाका ग्रंथानुसार प्रसंग आता है कि वसुराजा के समय में वेद पाठियों की शास्त्रार्थ में चर्चा हुई है. एक तो कहता था कि वेद में यज्ञाधिकार के विषय में अज होम करना लिखा है, सो अज नाम बकरे का है, सो बकरे का हवन होना चाहिये. दूसरा वोला, कि अज नाम पुराणे जौ का है, सो जौं का हवन होना चाहिये, अव कदो श्रोता जनों ! कौनसा कथन प्रमाण किया जावें? वेद पर निश्चय करें तव तो उस शब्द के दोनों दी अर्थ सत्य है. बस. अब क्या तो सम्बंध अर्थ पर और क्या