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२४० . काष्ट सा होता है उसे गाजर की हड्डी कहते हैं; इति. और ज्ञाताजी में जो शेलकजी ने मद्य मांस सदित आहार लिया कहा हो सो वद शेलकजी रोग कर के संयुक्त थे, तां ते मधु नाम यहां मदिरा का नहीं समऊना, मधु नाम फलों का मधु अर्थात् अर्क और मांस नाम से पूर्वोक्त फलोंका दल अर्थात् कोलापाक बजौरद पाक, मसलन मुरब्बा. और नेमजी की वरात के लिये पशु घेरे कहते हो, सो वह यादव वंशीय राजा दात्रिय वर्णमें थे ननमें कई एक जैन मतावलम्बीनी थे, और कई निन्न २ मतानुयायी थे, कई प्रत्ति मार्ग में चलने वाले और कई निवृत्ति मार्ग में थे, जनका कहना ही क्या ?परन्तु श्री जैन सूत्रों में श्री जैनेन्द्र देव की आज्ञा मांस नक्षण में कदापि नहीं हो सकती है, क्यों कि जिन वाणी अर्थात् जिन आज्ञा का नाम प्रश्रव्याकरण सूत्र के प्रथम संनर कार में