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एवं वयासी संजमेणं अजोअण एहय फलेतवेणं वोदाण फले.
अर्थः(संघ) संयम का हे पूज्यजी! क्या फल? तप का हे पूज्यजी ! क्या फल? (ततेणं०) तव ते थेवर जगवंत (समणो वासया) श्रावक प्रत्ये ( एवं० ) यों बोले, (संजमेणं0) संयम का (अजो) दे आर्य!(अणएहर) अनाश्रव अर्थात् आगामि समय को पुण्य पाप रूप कर्म का अन्तःकरण में से चयकान
दोना यह फल है, (तवणं) तप का, (बोदाण' . फ) पूर्व किये हुए कर्म जो अन्तःकरण में सञ्चय थे, उनका क्षय होना, यह फल है.
एसे ही प्रत्येक स्थान (हर जगह) सू. त्रों में जैनी लोग जैनियों को आर्य नाम से पु
कारते आये हैं. इनके सिवाय आर्य मत .. कौनसा है ? हां,आर्यावर्त के रहने वाले दिन खोगों को जी देशीय नापा में आर्य कइते हैं. हां, अव एक और ही नवीन मत३५