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१२८ रण से आय जरतखएम ऋषभ देवजी नगवान् के वक्त से कहलाया; अनन्तर (बाद में) राजा भरत चक्रवर्ती की अमलदारी वः खएम में होने से भारतखम नाम से प्रसिध (मशहूर ) हुआ और जैन शास्त्र जो सनातन हैं जिनकी लिखित भी अनुमान हजार वर्ष तक की मिलने का ठिकाना दीखे हैं, उनमें जी जहां जैनियों के परस्पर वार्त्तालाप का कथन आता है वहां प्रार्य नाम से बुलाया गया है; यथा श्रीमत् उत्तराध्ययनजी, सूत्र अध्ययन तेरहवां गाथा ३२ वीं में लिखा है:
जइ तंसि जोगे च असत्तो, प्रजाई कम्माई करे दीएयं; धम्मे विन सब प्रयाणु कंपी, तो दो दिसि देवोइ प्रोवि प्रोवी ॥ ३२ ॥
जैनाचार्य्यजी उपदेश करते हुए ब्रह्म
दत्त राजा प्रत्ये:
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