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रण से आर्य जरतखएक ऋषन देवजी नगवान् के बक्त से कहलाया; अनन्तर (बाद में) राजा नरत चक्रवर्त की अमलदारी बः खएक में होने से नारतखहम नाम से प्रसि ( मशहूर ) हुआ. और जैन शास्त्र जो सनातन हैं जिनकी लिखित जी अनुमान हजार वर्ष तक की मिलने का ठिकाना दीखे हैं,उनमें नी जदां जैनियों के परस्पर वार्तालाप का कथन आता है वहां आर्य नाम से बुलाया गया है; यथा श्रीमत् उत्तराध्ययनजी, सूत्र अध्ययन तेरहवां गाथा ३२ वीं में लिखा है:- .
जइ तंसिनोगे च असत्तो, अजाई कम्माइं करे दीएय; धम्मे ग्नि सब पयाणु कंपी, तो हो हिसि देवोइ ओबि ओव॥३॥
जैनाचार्यजी उपदेश करते हुए ब्रह्मदत्त राजा प्रत्येः
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