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१२२ प्य सहस्रशः (हजारदा) बनाता है, फिर पीठे . मैथुनी पुरुष होते हैं. - तर्कः-अब देखिये,प्रथम तो माता पिता बिना पुरुष का होना ही एकान्त असंभव है; यथा रद बिना फल का होना. मला! ईश्वर ने अपनी माया से बनाये कह ही दिये परन्तु यह तो समझना ही पमेगा, कि वह हजारो पुरुष पृथिवी विना क्या आकाश में ही लटकते रहे होंगे? अपितु नहीं, सृष्टि पहिले ही होगी, और उसमें मनुष्य जी होंगे; यद प्रवाद रूप सिलसिलायों दी चला आता है. क्यों भ्रम में पम कर ईश्वर को सृष्टि के बनाने का परिश्रम गने वाला मान बैठे हो? और फिर २३७ पृष्ठ १७ पंक्ति में लिखते हैं:
प्रश्नः-मनुष्य सृष्टि पहिले, वा पृथिवी आदिक?
उत्तरः-पृथिवी आदिक. क्यों कि पृथिवी विना मनुष्य काहे पर रहें ?