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________________ ( ८० ) और कुछ भी न बन आवे, तो इतना तो अवश्यमेव करना तिसका नाम "जीत आचार" जैसे श्रावकों का जीत आचार है कि मदिरा का पान नहीं करना, दो वक्तप्रतिक्रमण करना वगैरह अवश्यकरणीय है, तो उस से पुण्य बंध नही होता है, ऐसे किस शास्त्र में है ? इस सेतो अधिक पुण्यका बंध होता है, यह बात निःसंशय है। तथा श्री जंबूद्वीपपन्नत्ति में तीर्थकरके जन्म महोत्सव करने को इंद्रादिक देवते आए हैं, तहां एकला जीत शब्द नहीं है, किंतु वंदना, पूजना भक्ति, धर्मादिको जानके आए लिखा है; और उववाइ सूत्रमें जब भगवान् चपानगरी में पधारे थे तहां भी इसी तरे का पाठ है परंतु जेठेमूढ़ मतिको दृष्टि दोष से यह पाठ दिखा मालूम नहीं होता है ॥ तथा मूर्ख शिरोमणि जेठा लिखता है कि " बनीये लोग अपना कुलाचार समझ के मांस भक्षण नहीं करते हैं, इसवास्ते तिनको पुण्य बंध नहीं होता है" इस लेखसे जेठेने अपनी कैसी मूर्खतादिखलाई है सो थोडे से थोड़ी बुद्धि वाले को भी समझ में आजा वे ऐसी है । अरे ढूंढियो ! तुमारे मन से तुमको तिस वस्तु के त्यागने से पुण्य का बंध नहीं होता होगा. परंतु हमतो ऐसे समझते हैं कि जितने सुमार्ग और पुण्य के रस्ते हैं वे सर्व धर्म शास्त्रानुसारही हैं, इसवास्ते धर्म शास्त्रानुसारही मांस मदिरा के भक्षणमैं पापहै, यह स्पष्ट मालूम होता है, और इस वास्ते सर्व श्रावक तिनका त्याग करते हैं, और पूर्वोक्त अभक्ष्य वस्तुके त्यागने से महा पुण्य बांधते हैं। तथा नमुथ्थुणं कहने से इंद्र तथा देवताओंने पुण्यका बंध किया है यह बात भी निःसंशय है तथा इंद्र ने भी शुभ कराके महा पुण्य उपार्जन करा है, और
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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