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________________ (५) उपकरणादि भेष रखते हो, परंतु शुद्ध परंपराय वाले सम्यग्दृष्टि श्रावक तुमको मानते नहीं हैं;तैसे ही जमाली गोशाला प्रमुख का भी जान लेना,तथा तुमारे कुपंथ में भीजो फंसे हुए है,जब उनको यथार्थ शुद्ध जैनधर्मका ज्ञान होताहै,उसी समय जमालीके शिष्यों कितरांतुमको छोडके शुद्ध जैन मार्ग को अंगीकार कर लेते हैं, और फेर वोह तुमारे सन्मुख देखना भी पसंद नहीं करते हैं। फेर जेठा लिखता है कि "जैसे मरे भरतार की प्रतिमा से स्त्री की कुछ भी गरज नहीं सरती है,तैसे जिन प्रतिमा से भी कुछ गरज नहीं सरती है,इसवास्ते स्थापना निक्षेपा वंदनीक नहीं है" इस का उत्तर-जिस स्त्री का भरतार मरगया होवे,वोह स्त्री जेकर आसन बिछा कर अपने पति का नाम लेवेतो क्या उसकी भोगवा पुत्रोत्पत्ति आदि की गरज सरे? कदापि नहीं, तबतो तुम ढूंढकों को चउवीस तीर्थंकरों का जाप भी नहीं करना चाहिये,क्योंकि इस से तुमारे मत मूजिब तुमारी कुछ भी गरज नहीं सरेगी, वाहरे जेठे मूढमते ! तैंने तो अपने ही आप अपने पगमें कुहाड़ा मारा इतना ही नहीं,परंतु तेरा दिया हष्टांत जिन प्रतिमा को लगताही नहीं है। फेर जेठमलजी कहते हैं कि " अजीव रूप स्थापना से क्या फायदा होवे?" उत्तर-जैसे संयम के साधन वस्त्र पात्रादिक अजीव हैं, परंतु तिससे चारित्र साध्या जाता है, तैसे ही जिन प्रतिमा की स्थापना ज्ञान शुद्धि तथा दर्शन शुद्धि प्रमुखका हेतु है जिसका अनु. भव सम्यग् दृष्टि जीवों को प्रत्यक्षहै, तथा जैन शास्त्रों में कहा है कि लड़के रस्ते में लकड़ीका घोड़ा बनाके खेलते होवें, तहां साधु जा निकलें, तो "तेरा घोड़ा हटा ले" ऐसे उसको घोड़ा कहे,परंतु लकड़ी ना कहे,यदि लकड़ी कहे तो साधुको असत्य लगे, इस बात
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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