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________________ ( e) सके तो उस वस्तुमें चार निक्षेपे तो अवश्य करे॥ अब विचारना चाहिये कि शास्त्रकारने तो वस्तुमें नाम निक्षेपा कहा है और जेठा मूढमति लिखता है कि जो वस्तुका नाम है सो नाम निक्षेपा नहीं, नाम संज्ञा है तो इस मंदमतिको इतनी भी समझ नहीं थी,कि नाम संज्ञामें और नाम निक्षेपेमें कुछ फरक नहीं है ? श्रीठाणांगसत्रके चौथे ठाणेमें नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव यह चार प्रकारकी सत्यभाषा कही है जो प्रथम लिख आए है __श्रीठाणांगसूत्रके दशमें ठाणेमें दशप्रकारका सत्य कहा है तथा श्री पन्नवणाजीसूत्रके भाषा पदमें भी दश प्रकारके सत्य कहे हैं उनमें स्थापना सच्च कहा है सो पाठ यह है ॥ दसविई सच्चे पण्णत्ते तंजहा । जणवय सम्मय ठवणा, नामे रुवे पडुच्चसच्चेया वव हार भाव जोए, दसमे उवम्मसच्चेय। अर्थ-दश प्रकारके सत्य कहे हैं, तद्यथा । (१) जनपदसत्य (२) सम्मतसत्य, (३) स्थापनासत्य, (४) नामसत्य, (५) रूपसत्य, (६) प्रतीतसत्य, (७) व्यवहारसत्य, (८) भावसत्य, (९) योगसत्य और (१०) दशमा उपमासत्य ॥ इस सत्र पाठसे स्थापना निक्षेपासत्य और बंदनीक ठहरता है, तथा चौवीस जिनकी स्तवना रूप लोगस्सका पाठ उच्चारण करते हुए ऋषभादि चौवीस प्रभुके नाम प्रकटपने कहते हैं और बंदना करते हैं सो बंदना नाम निक्षेपेको है । तथा श्रीऋषभदेव भगवान्के समयमें चौवीसत्या पढ़ते हुए अन्य २३ जिनको द्रव्य
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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