SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है,और उसी मूजिब हम कहते हैं,इसवास्ते जेठे कुमतिका लिखना विलकुल मिथ्या है ॥ प्रश्नके अंतने नमुत्थुणं इंद्रने कहा है,इस बाबत निःप्रयोजन लेख लिखकर जेठमलने अपनी मूढता जाहिर करी है। प्रश्नके अंतर्गत द्रव्य निक्षेपा बंदनीक नहीं है ऐसे जेठेने ठहराया है सो प्रत्यक्ष मिथ्या है क्योंकि श्रीठाणांगसूत्रके चौथे ठाणेमें चार प्रकारके सत्य कह हैं यतःचउठिवह सच्चे पराणत्ते।नामसच्चे, ठवणा सच्चे, दव्वसच्चे, आवसच्चे। अर्थ-चार प्रकारके सत्य कहे हैं (१) नामसत्य, (२)स्थापना सत्य, (३) द्रव्यसत्य (४) भावसत्य इस सूत्रपाठमें द्रव्य सत्यकहा है और इससे द्रव्य निक्षेपा सत्य है ऐसे सिद्ध होता है। जेठमल ने लिखा है कि "आगामी काल के तीर्थंकर अब तक अविरति,अपच्चक्खाणो चारों गतिमें होवें उनको बंदना कैसे होवे ?"उत्तर-श्रीमदेवजीक समय में आवश्यक में चउविसस्था था या नहीं ? जेकर था,तो उसमें अन्य २३ तीर्थकरोंको श्रीऋषभ देव जी के समय के साधु श्रावक नमस्कार करते थे कि नहीं? ढूंढियों के कथनानुसार तो वो अन्य २३ तीर्थकर बंदनीक नहीं हैं ऐसे ठहरता है और श्रीअभदेव भगवान् के समय के साधु श्रावक तो चउविसत्था कहते थे और होनेवाले २३ तीर्थकरोंको नमस्कार करतेथे,यह प्रत्यक्ष है, इसवास्ते अरे मढदंडियों! शास्त्रकारने द्रव्य निक्षेपा बंदनीक कहा है इस में कोई शक नहीं है, जरा अंतान हो कर विचार करो और कुमत जाल को तजो॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy