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________________ रित्र, (११) जंबूद्वीप, (१२) लवणसमुद्र, (१३) धातुकीखंड, (१४) कालोदधिसमुद्र,(१५) घृतवरसमुद्र, (१६) दधिवरसमुद्र,(१७) क्षीर वरसमुद्र, (१८) वारुगीसमुद्र,(१९)श्रावकके बारहवत, (३१) श्राव' ककी एकादश पडिमा, (४२) एकादश अंगके नाम, (५३) बारह उपांगके नाम, (६५) चुल्लहिमवान् पर्वत, (६६) महाहिमवान् पर्वत, (६७) रूपीपर्वत, (६८) निषधपर्वत, (६९) नीलवंत पर्वत, (७०) नम्मुक्कार सहियं इत्यादि दश पञ्चक्खाण,(८०)छैलेश्या,(८६) आठ कर्म इत्यादि वस्तुयों के नाम जैसे गुणनिष्पन्न हैं, तैसे सिद्धायतन भी गुणनिष्पन्न ही नाम है ॥ . दूसरे लौकिक नाम कथा निरूपण ऋषभदत्त,संजतिराजा प्रमुख कहे हैं, वे गुणनिष्पन्न होवे भी और ना भीहोवे, क्योंकि वे नाम तो तिन के माता पिताके स्थापन किये हुए होते हैं। महापुरुष बावत लिखा है, सो वे महा पापके करनेशले थे, इसवास्ते महा पुरुष कहे हैं,तिसमें कुछ बाधा नहीं है,परंतु इसबात का ज्ञान जो जैनशैलिके जानकार होवें और अपेक्षा को समझने वाले होवें,उनको होता है, जेठमल सरिखे मृषावादी और स्वमति कल्पनासे लिखने वालेको नहीं होता है। अनुत्तर विमान के नाम गुण निष्पन्न ही हैं, और तिनका द्वीप समुद्र के नामों साथ संबंध होनेका कोई कारण नहीं है। श्रीअनुयोग द्वार सूत्रमें कहे गुणनिष्पन्न नामके भेदमें सिद्धा. यतन नामका समावेश होता है। ___ भरतादि विजयों में मागध१ वरदामर और प्रभास ३ यह तीर्थ कहे हैं, सो तो लौकिक तीर्थ हैं; इनको माननेका सम्यग् दृष्टि को क्या कारण है ? अरे मूढ ढूंढीयो ! कुछ तो विचार करो कि जसं
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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