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________________ (१३) ही देव गृह है, और तिसमें रही देवकी प्रतिमा पूजी है, देहरासर (मंदिर) दो प्रकार के होते हैं, घर देहरासर (घर चैत्यालय) और बड़ा मंदिर, तिनमें द्रोपदी ने प्रथम घर चैत्यालय की पूजा करके पीछे बडे मन्दिर में विशेष रीति से सतारां प्रकार की पूजा करी है आज काल भी यही रीति प्रचलित है बहुत श्रावक अपने घर देहरासर में पूजा करके पीछे बडे मंदिर में बन्दना पूजा करने को जाते हैं द्रोपदी के अधिकार में वस्त्र पहिनने की बाबत जो पीछे से लिखाहै सो बड़े मंदिरमें जाने योग्य विशेष सुन्दर वस्त्र पहिने हैं परन्तु "प्रथम वस्त्र पहिने ही नहीं थे, नग्नपणे ही स्नान करने को बैठी थी” ऐसा जेठेने कल्पना करके सिद्ध किया है, सो ऐसी महा विवेकवती राजपुत्री को संभवेही नहीं है, यह रूढी तो प्रायः आज कलकी निर्विकेकिनी स्त्रियों में विशेषतः है ।। * - ८ में प्रश्न में लिखा है कि "लकड़हारेने किसकी पूजा करी". इसका उत्तर साफ है कि बनमें अपनामाननीय जो देव होगातिस की उसने पूजा करी ॥ . ९ में प्रश्न में लिखा है कि " केशी गणधर ने परदेशी राजा को स्नान करके बलिकर्म करके देव पूजा करने को जावे,इसतरह कहा,तो तहां प्रथम किसकीपूजा करी" इसका उत्तर-प्रथम अपने घर में (जैसे बहुते वैश्नव लोक -अबभी देव सेवा रखते हैं तैसे ) _* कई विवेकवती स्त्रिया गाज कालभी नग्नपणें स्नान नहीं करती हैं, विशेष करके पूजा करनेवाली स्त्रियों को तो इस बात का प्रायः जरूर ही ख्याल रखना पड़ता है। और श्राद्ध विधि विवेक बिलासादि शास्त्रोंमे नग्नपणे स्नान करने की मनाई भी लिखी है दक्षिणी लोकों की औरतें प्रायः कपडे माहित ही स्नान करती हैं, अधिक वेपडद होना तो प्रायः पंजाब देश में ही मालूम होता है।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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