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________________ स्तक तो महावीरस्वामी के निर्वाणवाद लिखे गए हैं तो पहिलेतो कुछ पुस्तककी आशातना होनी नहीं थी” यह लिखनाभी जठेका अज्ञानयुक्त है,क्योंकि अठारां लिपि तोश्रीऋषभदेवके समयसे प्रगट हुई हुई है तथा तुमारे किस शास्त्रमें लिखा है कि महावीरके निवीण वाद अमुक संवत्में पुस्तक लिखे गए हैं, और इससे पहिले कोई भी पुस्तक लिखे हुए नहीं थे ? और यदि इससे पहिले बिल कुल लिखत ही नहीं थी,तो श्रीठाणांगसूत्रमें पांचप्रकारके पुस्तक लेनेकी साधुको मनाकरी है, सो क्या बात है ? जरा आंखें मीदके सोच करो॥ ॥इति ॥ (६) यात्रातीर्थ कहे हैं तद्विषयिक छठे प्रश्नोत्तरमें जेठेने भगवतीसूत्रमेंसे साधुकी यात्रा जो लिखी है,सो ठीक है, क्योंकि साधु जब शत्रुजय गिरनार आदि तीर्थो की यात्रा करता है, तब तीर्थभूमिके देखने से तप, नियम, संयम स्वाध्याय, ध्यानादि अधिक वृद्धिमान होते हैं, श्रीज्ञातासूत्र तथा अंतगडदशांगसूत्र में कहा है कि-जाव सित्तुंजे सिद्धा-इस पाठ से सिद्ध है कि तीर्थ भूमिका शुभ धर्मका निमित्त है, नहीं तो क्या अन्य जगह मुनियोंको अनशन करनेके वास्ते नही मिलती थी ? तथा श्रीआचारांगसूत्रकी नियुक्तिमें घणे तीर्थोकी यात्रा करनी लिखी है * और नियुक्ति माननी श्रीसमवायांगसूत्र तथा श्रीनंदि * श्रीआचारांग सूत्रकी नियुक्तिका पाठ यह है यतःदसण णाण चरित्ते तव वेरग्गेय होइ पसत्था। जाय जहा ताय तहा लक्खण वोच्छं सलक्खणओ।। ४६ ॥
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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