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________________ ( ४ ) प्रत्यनीक,अर्थ प्रत्यनीक और तदुभयप्रत्यनीक एवं तीन प्रकार के प्रत्यनीक कहे हैं-यतःसयं पडुच्च तो पडिणीया पण्णता सुत्त पडिणीए अत्थपडिणीए तदुभयपडिणीए । ढूंढक इस प्रकार नहीं मानते हैं इसवास्ते येह जिन शासन के प्रत्यनीक हैं। . (५) श्रीभगवती सूत्रमें कहा है कि जो नियुक्ति न माने, तिसको. अर्थ प्रत्यनीक जाणना ढूंढक नहीं मानते हैं, इसवास्ते येह अर्थ प्रत्यनीक हैं। . (६) श्रीअनुयोग द्वार सूत्रमें दोप्रकारका अनुगम कहा है यतःसुत्ताणुगमे निज्जत्ति अणुगमेय-तथा-निज्जुत्ति अणुगमेतिविहे पणत्त उवघायनिज्जत्ति अणुगमे इत्यादि-तथा-उसे नि सेनिग्गमेखित्तकाल पूरिसेय।इत्यादिदोगाथ हैं . .. ढूंढिये पंचांगीको नहीं मानते हैं तो इससूत्र पाठका अर्थ क्या करेंगे। (७ श्रीभगवतीसूत्रके२५ में शतकके तीसरे उद्देशेमें कहाहै-किःसुत्तत्थो खलु पढमो बीपी निज्जत्ति मिस्सिओ भणिनी। तइओय निरविसेसी।एस विही होइ अणु ओगो * ॥ १ ॥ *श्रीनं दिसूत्रमें भी यह पाठ हैं। - -
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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