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________________ कुंडलीछंद-मानो आज्ञा धर्म जिन आज्ञाधर्मसुमीत, जो आज्ञा हृदये धरे सो सुमति की रीत,सो सुमतिकी रीत नीत उववाई भाषी, श्रावक घणे प्रमाण नगरी चंपा जी दाषी, जिनमंदिर जिनचेत्य घणे विध पूजा ठानो,अर्थ सूत्र नित सुनो धर्म जिन आज्ञा मानों। सवैया-देख जेठकी जुदाई पाठ रखदे छिपाई करें कूडकी कमाई राह उलटा बतावदे, रुले पापी सो अपार करें खोटा जो आचार वगी धरम कीमार साध श्रावक कहांवदे,झूठे बैनकहे जग सेवकासे लैंदे ठग सठ हठ कठ झग प्रभु मनमें न लावदे,जैसे रविका प्रकाश नर नारी से हुलास नैन उल्ल के विनाश देख पूजा नस जावदे ।३। __कुंडलीछंद-छाया जिनतरु बैठके काटे तरु अविनीत,पूजासे हिंसा कहे उलटी. पकडे रीत, उलटी पकडे रीत धीठ. दुर्गति को जावें,प्रभु मुख से वो चोर अर्थ सूत्र नहीं पावें,जिनपडिमा स्वीकार उपासकदसा बताया,श्रावक देख अनंद बैठके तरु जिम छाया॥ सवैया-हाढ बोलदे हवान नहीं सुतर परमाण करें उलटा ज्ञान पंथ आपनाचलांवदे,प्रभु आज्ञा न माने वोह कुलिंग रूप ठाने उत सूतर बखाने मिथ्या दृष्टिकोवधांवदे, मुखों कहें हम साध करें ऐसे अपराध बैठे डोबके जहाज पारदधिका न पांवदे,जैसे मिसरी मिठाई मन गधे के ना भाइ प्रभु पूजा की रसाई बिन जनम गवांवदे । ४ कुंडलीछंद-मीतसु आचारंगकी नियुक्तिका ज्ञान, पूर्ण सतगुरु हम मिले तिमर गए चढभान,तिमर गए चढ़ भान अर्थ जब पूर्ण पाये, पूजा यात्रा भेद सभी ये अर्थ बताये,दूध बडो रस जगत में कुमति ज्वर ना पीत, पीवत वो प्राण न हरे आचारंग समीत ॥ . . सवैया-सुन सावण नकारेजैनसूतरोंसे न्यारेकहे जैनीहम भारे ये पखंड क्या मचाया है। कहें वीरके हुं साध करे सूतरा पराध वीर
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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