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________________ (२६. ) . निन्हवों ने तो भगवतका एक एकही वचन उत्थाप्या है और उन को शास्त्रकारने मिथ्यादृष्टि कहा है यत :· पयमक्खरंपि एक्कंपि जो नरोएइ सुत्तनिद्दिठं। सेसं रोयंती विहु मिच्छदिठी जमालिव्व ॥१॥ ___ मूढमति ढूंढियोंने तो भगवंतके अनेक वचन उत्थापे ह, स्त्र विराधे हैं,सूत्रपाठ फेरदिये हैं, सूत्रपाठ लोपे हैं,विपरीत अर्थ लिखे हैं, और विपरीत ही करते हैं; इसवास्ते यह तो सर्व निन्हवोंमें शिरोमणि भूत हैं। ___ अब ढूंढिये दयाधर्मी बनते हैं परंतु वे कैसी दया, पालते हैं, गरज दयाका नाम लेकर किस किस तरहकी हिंसा करते हैं, सो दिखानेवास्ते कितनेक दृष्टांत लिखके वे हिंसाधर्मी हैं, ऐसे सत्यासत्य के निर्णय करने वाले सुज्ञपुरुषोंके समक्ष मालूम करते हैं। (१) सूत्रोंमें उष्णपाणीका स्यालमें तथा चौमासेमें जुदाजुदा काल कहा है,उस काल के उपरांत उष्ण पाणी भी सचित्तपणेका संभव है,तो भीढूंढीये कालके प्रमाण विना पाणीपाते हैं इसवास्ते काल उल्लंघन करा पाणी कच्चाही समझना * ॥ - (२) रात्रिको चुल्हे पर धरा पाणी प्रातः को लेकर पीते हैं, जो पाणी रात्रि को चुल्हा खुला न रखने वास्ते धरने में आता है (प्रायः यह रिवाजगुजरात मारवाड़ काठीयावाड़ में है)जोकि गरम तो क्या परंतु कवोष्ण अर्थात् थोडासा गरम होना भी असंभव है इस वास्ते वो पाणी भी कच्चा ही समझना ॥ ' .. * टूढीये धोवणका पाणी शास्त्रोक्त मर्यादारहित कच्चाही पीते हैं। ' - -
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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