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________________ ( २७६ ) शैलिसे विपरीत प्ररूपणा करने वाले हैं, और इसीवास्ते ढूंढिये गोशालामतीसह सिद्ध होते हैं | (११) ग्यारह में बोल में जेठा लिखता है कि “जैनधर्मी जिनप्रतिमाको जिनवर सरीखी मानते हैं इससे ऐसे सिद्ध होता है कि अजिनको जिनतरीके मानते हैं" उत्तर - पुण्यहीन जेठेका यह लेख महामुर्खता युक्त है, क्योंकि सूत्रमें जिनप्रतिमा जिनवर सरीखी कही है, और हम प्रथम इसबाबत विस्तारसे लिख आए हैं; जब इंढिये देवीदेवलाकी मूर्त्तियों को तथा भूतप्रेतको मानते हैं, तो मालूम होता है कि फकत जिनप्रतिमाके साथ ही द्वेष रखते हैं, इससे वे तो गोशालामतिके शरीक सिद्ध होते हैं ॥ ऊपर मूजिब जेठेके लिखे (११) बोबों के प्रत्युत्तर हैं । अंब ढूंढिये जरूरही गोशाले समान हैं यह दर्शाने वास्ते यहां और (११) बोल लिखते हैं | (१) जैसे गोशाला भगवंतका निंदक था, तैसे ढूंढियेभी जिन प्रतिमाके निंदक हैं | (२) जैसे गोशाला जिनवाणीका निंदक था, तैसे ढूंढियेभी जिनशास्त्रोंके निंदक हैं ॥ (३) जैसे गोशाला चतुर्विधसंघका निंदक था, तैसे ढूंढिये भी जैनसंघ निंदक हैं ॥ (४) जैसे गोशाला कुलिंगी था, तैसे ढूंढिये भी कुलिंगी हैं। क्योंकि इनका वेष जैनशास्त्रोंसे विपरीत है ॥ (५) जैसे गोशाला झूठा तीर्थंकर बन बैठा था, तैसे ढूंढियेभी खोटे साधु बन बैठे हैं ॥ -(६) जैसे गोशालका पंथ सन्मूच्छिम था बैसे ढूंढियोंका पंथ
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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