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( २७४ ) वगैरह करते हैं नाम लेकर विस्तारसे प्रथम प्रश्नोत्तरमें लिखा गया है इसवास्ते ढूंढियोंका मत आजीविकमत ठहरताहै। .
(५) पांचवें बोलमें “१४४४-बौद्धोंको जलादिया" ऐसे जेठा लिखता है, परंतु किसीभी जैनमुनिने ऐसा कार्य नहीं करा है और किसी ग्रंथमें जलादिये ऐसे भी नहीं लिखा है, 'इसवास्ते जेठेका लिखना झूठ है, जेठा इसतरह गोशालेके साथ जैनमतिकी सादृश्यता करनी चाहता है, परंतु सो नहीं होसक्ता है, किंतु ढूंढिये वासी सड़ा हुआ आचार, विदल वगैरह अभक्ष्य वस्तु खाते हैं,जिससे बेइंद्रिय जीवोंका भक्षण करते हैं इससे इनकीतो गोशाला मतिके साथ सादृश्यता होसक्ती है।
(६) छठे बोलमें “गोशालेको दाह ज्वरहुआ तब मिट्टी पाणी छिटकाके साता मानी" एसे जेठा लिखता है। उत्तर-यह दृष्टांत जैनमुनियोंको नहीं लगता है, परंतु ढूंढियों से संबंध रखता है । क्योंकि ढूंढिये लघुनीति (पिशाब) से गुदा प्रमुख धोते हैं और खुशीयां मनाते हैं ॥
(७) सातवें बोलमें जेठा लिखताहै कि गोशालेने अपना नाम तीर्थंकर ठहराया अर्थात् तेईस होगये और चौबीसवां मैं ऐसे कह इसीतरह जैनधर्मीभी गौतम, सुधर्मा, जंबू वगैरह अनुक्रमसं पाट बताते हैं" उत्तर-जेठेका यह लेखस्वयमेव स्खलनाको प्राप्त होता है, क्योंकि गोशाला तो खुद वीर परमात्माका निषेध करके तीर्थंकर बन बैठा था, और हम तो अनुक्रमसे परपराय पाटानुपाट ...यह तो प्रकट ही है कि जब रात्रिको पानी नहीं रखते तो कभी बड़ी नीति (पाखाना) हो तो जकर पियाब से ही गदा धोकर अशुचि टालते होंगे । बलिहार
इसीतरह हराया अर्थात् तसा लिखनाहै कि गोली
इस शुचिके।