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________________ (७. ) सरीखी नहीं" ऐसे सिद्ध करने वास्ते कितनीक कुयुक्तियां लिखी है परंतु सो सर्व मिथ्या हैं क्योंकिसूत्रोंमें बहुत ठिकाने जिनप्रतिमा को जिनसरीखी कहाहै,जहांरभाव तीर्थंकरको वंदना नमस्कारकरने पास्ते आनेका अधिकार है वहां वहां "देवयं चेइयं पज्जुवासामि" अर्थात् देव संबंधी चैत्य जो जिनप्रतिमा उसकी तरह पर्युपासना करूंगा ऐसे कहा है, तथा श्रीरायपसेणी सूत्रमें कहाहै "धूवंदाऊण जिणवराणं" यहपाठ सूर्याभ देवताने जिनप्रतिमापूजी तब धूपकरा उस वक्तका है, और इसमें कहा है कि जिनेश्वरको धूप करा 'और इसपाठमें जिनप्रतिमाको जिनवर कहा इससे तथा पूर्वोक्त दृष्टांतसे जिनप्रतिमा जिनसरीखी सिद्ध होती है, इसवास्ते इसबातक निषेधनेको जेठे मढमतिने जो आल जाल लिखा है सो सर्व झूठ और स्वकपोलकल्पित है। _जेठा लिखता है कि "प्रभु जल, पुष्प, धूप, दीप, वस्त्र, भूषण वगैरहके भोगी नहींथे और तुम भोगी ठहराते हो"उत्तर-यह लेख अज्ञानताकाहै,क्योंकि प्रभु गृहस्थावस्था तो सर्व वस्तु के भोगी थे,इस मुजिव श्रावकवर्ग जन्मावस्थाका अरोप करकेस्नान कराते हैं, पुष्पचढ़ाते हैं,यौवनावस्था का आरोपके अलंकारपहनाते हैं,और दीक्षावस्थाका आरोप करके नमस्कार करतेहैं, इसवास्तेअरिहंतदेव भोगाअवस्थामभोगी हैं,और त्यागीअवस्थामें त्यागी, भोगी नहीं, परंतभोगी तथास्यागी दोनोंअवस्थाओंमें तीर्थंकरपमा तो है ही,और उससे तीर्थंकरदेवगर्भसे लेकर निर्वाण पर्यंत पूजनीक ही हैं, इस वास्ते जेठेके लिखे दूषण जिनप्रतिमाको नहीं लगते हैं तथा ढंदियोंको हम पूछते हैं किसमवसरणमें जब तीर्थंकर भगवंत विराजते थे तब रत्न जड़ित सिंहासन ऊपर बैठते थे, चामर होते थे,
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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