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________________ ( २४८ ) उस ठिकाने तो चैत्य शब्दको अर्थ प्रतिमा नहीं ऐसे कहता है, और आरंभके स्थानमें चैत्य अर्थात् प्रतिमा ठहराता है, यह तो निःकेवल जिनप्रतिमा प्रति द्वेष दर्शाने वास्ते ही उसकी जबान ऊपर खर्ज (खुजली) हुई होवेगी ऐसे मालूम होता है । क्योंकि जिन तीन बातोंमें चैत्यशब्दका अर्थ प्रतिमा ठहराता है उन तीनों बातोंका प्रत्युत्तर प्रथम विस्तार से लिखा गया है। ३२में बोलमें चैत्य शब्दका अर्थ प्रतिमा है ऐसे जेठमलने मंजूर करा है । सो इस बातमें भी उसने कपट करा है । इसलिये ऐसी बातोंमें लिखान करके निकम्मा ग्रंथ वधाना अयोग्य जान कर कुछ भी नहीं लिखते हैं । पूर्वोक्त सर्व हकीकत ध्यानमें लेकर निष्पक्षपाती होकर जो विचार करेगा उसको निश्चय होजावेगा कि ढूंढिये चैत्य शब्दका अर्थ साधु और ज्ञान ठहराते हैं सोमिथ्या है। ॥इति ॥ . .. -~ -- (३३)जिनप्रतिमा पूजनके फल सूत्रों में कहे हैं इस बाबत। ३३मै प्रश्नोत्तरमें जेठमल लिखता है कि "सूत्रोंमें दश सामाचारी, तप, संयम, वेयावच्च वगैरह धर्मकरणीके तो फल कहे हैं;परंतु जिनप्रतिमाको वंदन पूजन करने का फल सूत्रोंमें नहीं कहा है" उत्तर-जेठमलका यह लिखना बिलकुल असत्य है, सूत्रों में जिनप्रतिमाको वंदन पूजन करनेका फल बहुत ठिकाने कहा है। तीर्थकर भगवंतको वंदन पूजन करनेसे जिस-फलका प्राप्ति होती है उसी फलकी प्राप्ति जिनप्रतिमा के वंदन पूजनसे होती है।
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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