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( २४६ ) कहे हैं, तथा 'इ' अर्थात् जिनप्रतिमाभी जुदी कही है, इसबाते इस अधिकार में अन्य कोई भी अर्थ नहीं हो सक्ता है, तथापि जेठेने तीनों ही बोलोंका अर्थ अकेले अरिहंतही जानना ऐसा करा है, सो उसकी मूर्खताकी निशानी है, कोई सामान्य मनुष्य फकत शब्दार्थ के जानने वालाभी कह सक्ता है कि इन तीनों बोलोंका अर्थ अकेले अरिहंत ऐसा करनेवाला कोई मूर्ख शिरोमणिहीहोवेगा । जेठमलजी लिखते हैं कि "पूर्वोक्तपाठ में चैत्य शब्दसे जिनप्रतिमा होवे और उसका शरण लेकर चमरेंद्र सुधर्मा देवलोक तक जा सक्ता होवे तो तीरछे लोक में द्वीपसमुद्र में शाश्वती प्रतिमा थीं; ऊर्ध्वलोक में मेरुपर्वत ऊपर तथा सुधर्मा विमान में सिद्धायतनमें नजदीक शाश्वती प्रतिमा थीं तो जब शक्रेंद्रने तिसके (चमरेंद्र के ऊपर वज्र छोडा तब वो जिनप्रतिमा शरणे नहीं गया और महावीरस्वामी के शरणे क्यों आया ?” इसका उत्तर- जेठमलने भद्रिक जीवोंको फंसाने वास्ते यह प्रश्न जाल रूपगूंथा है, परंतु इसका जबाब ' तो प्रत्यक्ष कि जिसका शरण लेकर गया होवे उसीकीशरण पीछा आवे । चमरेंद्र श्री महावस्वामीका शरण लेकर गया था, इसवास्ते पीछा उनके शरण आया है । जेठमलके कथनका आशय ऐसा है कि "उसके आते हुए रस्तेमें बहुत शाश्वती प्रतिमा और सिद्धायतन थे तोभीचमरेंद्रउनकेशरण नहीं गया इसवास्ते चैत्य शब्दकाअर्थजिनप्रतिमा नहीं और उसका शरण भी नहीं" | वाह रे मूर्खशिरोमणि! रस्ते में जिन प्रतिमा थीं उनके शरण चमरेंद्र नहीं गया परंतु रस्ते में श्रीसीमंधर स्वामी तथा अन्य विरहमानजिन विचरते थे उनके शरणभी चमकेंद्र नहीं गया, तब तो जेठेके और अन्य ढूंढियोंके कहे मूजिब विर हमान तीर्थंकरभी उसको शरण करने योग्य नहीं होवेंगे ! समझने
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