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(२५) ' (८) चित्रसारथी ने प्रदेशी राजाको प्रतिबोध कराने वास्ते श्री केशीगणधरके पास लेजाने वास्ते रथ घोडे, दौड़ाये। . .
(९) सूर्याभ देवताने जिनभक्ति के वास्ते भगवंतके समीप नाटक करा॥
(१०) द्रौपदीने जिनप्रतिमाकी सतरे भेदी पूजा करी॥
मंदमति जेठमलने इस प्रश्नोत्तरमें जो जो बोल लिखे हैं उन में 'अपनी इच्छा' ऐसा शब्द उन कार्योंको जिनाज्ञा विनाके सिद्ध करने वास्ते लिखा है; परंतु उनमें से बहुते कृत्य तो पुन्य प्राप्तिके निमित्त ही करे हैं जिनमेंसे कितनेक कारण सहित नीचे लिखे जाते हैं।
(१) कोणिकराजाने प्रभुको वधाई में नित्यप्रति साढे. बारह हजार रुपैये दीये सो जिनभक्तिके वास्ते ॥
(२) अनेक राजाओं ने तथा श्रावकोंने दीक्षा, महोत्सव कीये सो जैनशासनकी प्रभावना वास्ते॥
(३) श्रीकृश्नमहाराजाने दीक्षाकी दलाली वास्ते द्वारिकामें पडह फेरेया सो धर्मकी वृद्धिवास्ते॥
(४) इंद्र तथा देवतादिकोंने जिनजन्ममहोत्सव करे सो धर्म प्राप्तिके वास्ते ऐसा श्री जंबुद्वीपपन्नत्तीसूत्रका कथन है । .
(५) देवते नंदीश्वरद्वीपमें अठाई महोत्सव करते हैं सो धर्म प्राप्तिके वास्ते॥
(६) जंघाचारण तथा विद्याचारण लब्धि फोरते हैं सो जिन प्रतिमाके वांदने वास्ते॥
(७) शंख श्रावकने सधर्मीवात्सल्य किया सो सम्यक्त्वकी. शुद्धिके वास्ते । इस मूजिब अद्यापि पर्यंतसधर्मीवात्सल्यका रिवाज