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येह दासी पुत्र तुल्य हैं,इन में लेठाइका कोई भी चिन्ह नहीं है, अनंते तीर्थंकरों के अनंते शास्त्रों की आज्ञा से विरुद्ध इनका पंथ है इस वास्ते किसी भी जैनमतानुयायी को मानना न चाहिये।
और जो संघपट्टे का तीसरा काव्य लिखा है, तिस में तेरां (१३) खोट हैं, और तिसके अर्थ में जो लिखा है"नवा नवा कुमत प्रगट थाशे'सो सत्य है वो नवीन कुमतपंथ तुमारा ही है,क्योंकि जैन सिद्धान्त से विरुद्ध है,और जो इस काव्य के अर्थ में लिखा है "छकायना जीव हणीने धर्म प्ररूपसे” इत्यादि यह सर्व महा मिथ्या है क्योंकि काव्याक्षरों में से यह अर्थ नहीं निकलता है इस वास्ते जेठा ढुंढक महामृषा वादी था,और तिसको झूठ लिखने का बिलकुल भय नहीं था,इस वास्ते इस का लिखा प्रतीति करणे योग्य नहीं है ॥
- तथा चौथा काव्य लिखा तिल में तेवीस (२३) खोट है, इस काव्य के अर्थ में जो लिखा है "हिंसा धर्म.को राज सूर मंत्रधारीनी दीपती"इत्यादि सम्पूर्ण काव्यका जो अर्थ लिखा है सो महा मिथ्या और किसी की समझ में न आवे ऐसाहै,क्योंकि काव्याक्षरों में से यह अर्थ निकलता नहीं है,इसी वास्ते मुंहबंधे महा मृषावादी अज्ञानी पशु तुल्य हैं,बुद्धिमानों को इनका लिखना कदापि मानना न चाहिये ॥
- सतारवां काव्य लिखा तिसमें (१७) खोट हैं और इसके अर्थ में जो लिखा है “छ काय जीव हणीनेहींस्थायें धर्म कहे छे सूत्र वाणी ढांकीने कुपंथ प्रकरण देखी कारण थापी चेत्य पोसाल करावी अधो मार्गे घाले छे कीहाइ सूत्र मध्ये देहरा कराव्या नथी कह्या" यह अर्थ महा मिथ्या है क्योंकि काव्याक्षरों में है नहीं इस वास्ते