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॥ उोम् ॥
सम्यक्त्व शल्योद्धार
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|| श्री जैनधर्मोजयति ॥
मूर्ति निधाय जैनेंद्री सयुक्तिशास्त्रको टिभिः । भव्यानां हृद्विहारेषु लुम्पढुण्ढककिल्विषम् ॥ १ ॥ सम्यक्त्व गात्रशल्यानां व्याप्यानां विश्वदुर्गतेः । कङ्कुर्वक उद्धारं नत्वा स्याद्वाद ईश्वरम् ॥ २ ॥ युग्मम् ॥ ॥ ॐ ॥ श्री वीतरागायनमः ॥
( १ )
ढुंढक मत की उत्पत्ति वगैरह ॥
प्रथम प्रश्न में ढुंढकमती कहते हैं ''भस्मग्रह उतरा और दया धर्म प्रसरा" अर्थात् भस्मग्रह उतरे बाद हमारा दया धर्म प्रकट हुआ, इस कथन पर प्रश्न पैदा होता है कि क्या पहिले दया धर्म नहीं था ? उत्तर- था ही परंतु श्रीकल्पसूत्र में कहा है कि श्री महावीर स्वामी के निर्वाण बाद दो हजार वर्ष की स्थिति वाला तीसमा भस्मग्रह प्रभु के जन्म नक्षत्र पर बैठेगा जिससे दो हजार वर्ष तक साधु साध्वी की उदय उदय पूजा नहीं होगी, और भस्मग्रह उतरे बाद साधु साध्वी की उदय उदय पूजा होगी । भस्मग्रह के प्रभाव से जिनकी पूजा मंद होगी उनकी ही पूजा प्रभावना
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