SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४) उपधि, उपाश्रय, करावे तो सो साधुको कल्पे नहीं, तो उस निमित्त धन निकालने का क्या कारण ? इस बात पर श्री दशवकालिक, आचारांग, निशीथ वगैरह सूत्रों का प्रमाण दिया है" तिसका उत्तर-साधुसाध्वी के निमित्त किया आहार, उपधि, उपाश्रय प्रमुख तिनको कल्पता नहीं है, सो बात हमभी मान्य करते हैं; साधु अपने निमित्त वना नहीं लेते हैं और सुज्ञ श्रावक देतेभीनहींहै, परंतुश्रावक अपनी शुद्ध कमाई के द्रव्य में से साधु,साध्वा को आहार, उपधि, वस्त्र, पात्र प्रमख से प्रतिलाभते हैं, परंतु साधु साध्वी के निमित्त निकाले द्रव्य में से प्रतिलाभते नहीं हैं, और साधु लेते भी नहीं हैं, इन दोक्षेत्रके निमित्त निकाला द्रव्य तो किसी मुनिको महाभारत व्याधि होगया होवे उसके हटाने वास्ते किसी हकीम आदिको देना पड़े,अथवा किसी साधुने काल किया होवेतिस में द्रव्य खरचना। पड़े इत्यादि अनेक कार्यों में खरचा जाता है तथा पूर्वोक्त काम में भी जो धनाढय श्रावक होते हैं तो वो अपने पास सं ही खरचते हैं, परंतु किसी गाममें शक्ति रहित निर्धन श्रावक रहते होवें और वहां ऐसा कार्य आनपड़े तो उसमें से खरचा जाता है । ६-७ मा क्षेत्र श्रावक, और श्राविका इनकी बाबत जेठमल लिखता है कि 'पुण्यवान् होवे सो खैरात का दान लेवे नहीं" परंतु अकल के बारदान ढूंढक भाई! समझो तो सही सब जीव एक सरीखे पुण्यवान् नहीं होते हैं,कोई गरीब कंगालभी होते हैं कि जिन को खाने पीने की भी तंगी पड़ती है तो तैसे गरीब सधर्मीको द्रव्य देकर मदद करनी तिनको आजीविकामें सहायता देनीयह धनाढा श्रावकों का फरज है इस वास्ते धनी गृहस्थी अपने सह धम्मियों को मदद करते हैं, और जो अपने में शक्ति न होवे तो तिस क्षेत्र
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy