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________________ ( ११३ ) अन्यतीर्थीके देवके चारों निक्षेपे को बंदना त्यागी है कि केवल भाव निक्षेपा ही त्यांगा है ? यदि कहोगे कि अन्य तीर्थी के देव के चारों निक्षेपे को वंदना करनी त्यागी है तो अरिहंत देवके चारों निक्षेपे वंदनी ठेहरे, यदि कहोगे कि अन्यतीर्थी के देव के भावनिक्षेपको ही वंदने का त्याग किया है तो तिनके अन्य तीन निक्षेप अर्थात् अन्य तीर्थी देवकी मूर्त्ति वगैरह आनंद श्रावक को वंदनीक ठहरेंगे, इस वास्ते सोच विचार के काम करना, जेठमल लिखता है "जिन प्रतिमा का आकार जुदी तरहका है इस वास्ते अन्यतीर्थी तिसको अपना देव किस तरह माने ? " उत्तर - श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमाको अन्य दर्शनी बद्रीनाथ करके मानते हैं, शांतिनाथ की प्रतिमा को अन्य दर्शनी जगन्नाथ करके मानते हैं, कांगडे के किलेमें ऋषभदेवकी प्रतिमाको कितने लोक भैरव करके मानते हैं; तथा पहिले की प्रतिमा होवे जो कि कालानुसार किसी कारण से किसी ठिकाने जमीन में भंडारी होवे वोह जगह कोई अन्य दर्शनी मोल लेवे और जब वोह प्रतिमा उस जगह में से उस को मिलती है तो अपने घर में से प्रतिमा के निकालने से वो अपने ही देव की समझ कर आप अन्य दर्शनी हुआ हुआ भी तिसप्रतिमा की अर्चा-पूजा करता है, और अपने देव तरीके मानता है, इस वास्ते जेठमल का लिखना कि अन्य दर्शनी जिन प्रतिमाको अपना देव करके नहीं मान सक्ते हैं सो बिलकुल असत्य है ॥ फेर लिखा है कि " चैत्यका अर्थ प्रतिमा करोगे तो तिस पाठ में आनंद श्रावकने कहा कि अन्यतीर्थी को, अन्यतीर्थी के देवको और अन्यतीर्थी की ग्रहणकरी जिन प्रतिमाको बांदू नहीं, बुलाऊं नहीं, दान देऊं नहीं, सो कैसे मिलेगा ? क्योंकि जिन प्रतिमाको बुलाना
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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