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________________ (. १०५ ) . . जेठमल ने लिखा है कि "चारणमुनि वो कार्य करके आनके आलोये पडिकमे विना काल करे तो विराधक होवे ऐसे कहा है,सो चक्षु इंद्रिय के विषय की प्रेरणा से द्वीप समुद्र देखनेको गये हैं इस वास्तेसमझना" यह लिखना जेठमलका बिलकुल मिथ्या हैक्योंकि तिन को जोआलोचना प्रतिक्रमणा करना है सो जिनवंदनाका नहीं है, किंतु उस में होए प्रमाद का है; जैसे साधु गोचरी करके आनके आलोचना करता है सो गोचरीकी नहीं, किंतु उसमें प्रमाद वश से लगे दृषणों की आलोचना करता है, तैसे ही चारमुनियों को भी लब्ध्युपजीवन प्रमाद गति है । और दूसरा प्रमादका स्थानक यह है कि जो लब्धिके बल से तीरके वेगकी तरेंशीघ्रगतिसेचलतेहए रस्ते में तीर्थयात्राप्रमुख शाश्वते अशाश्वते जिनमंदिर विना वांदे रह जाते हैं, तत्संबंधी चित्त में बहुत खेद उत्पन्न होता है; इस तरह तीरके वेगकी तरें गये सोभा आलोचना स्थानक कहिये ॥ फेर जेठमल ने अरिहंत को चैत्य ठहराने वास्ते सूत्रपाठलिखा है तिस में"देवयं चेइयं” इस शब्द का अर्थ "धर्म देव के समान ज्ञानवंत की" ऐसे किया है सोझूठा है क्योंकि देवयं चेइय-दैवतं चैत्यं इव-अर्थ-देवरूप चैत्य अर्थात जिन प्रतिमा की जैसे पज्जु वासामि-सेवा करता हूं,यह अर्थ खरा है,जेठा और तिस के ढूंढक इन दोनों शब्दों को द्वितीयाविभक्ति का वचन मात्र ही समझते हैं, परंतु व्याकरण ज्ञान विना शुद्ध विभक्ति,और तिसके अर्थ का भान । कहां से होवे ? केवल अपनी असत्य बात को सिद्ध करनेके वास्ते जो अर्थ ठीक लगेसो लगा देना ऐसा तिनका दुराशय है,ऐसा इस बात से प्रत्यक्ष सिद्ध होता है। . फिर समवायांग सूत्र का चैत्य वृक्ष संबंधी पाठ लिखा है सो
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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