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________________ कथन है,इस वास्ते मानुषोत्तर तथा रुचकद्वीप पर जिनभवन नहीं है ऐसा जेठमल का लेख बिलकुल असत्य है । पुनः जेठा लिखता ह कि-"नंदीश्वरद्वीप में संभूतला ऊपर तो जिनभवन कहे, नहीं हैं, और अंजनगिरि तो चउरासी (८४) हजार योजन ऊंचा है, तिस पर चार सिद्धायतन हैं, तहां तो जंघाचारण विद्याचारण गये नहीं है। इस का उत्तर-सिद्धायतन को वंदना करने वास्ते ही चारण मुनि तहां गये हैं तो जिस कार्य के वास्ते तहां गये हैं, सो कार्य नहीं किया ऐसे कहाही नहीं जाता है,क्योंकि श्रीभगवती सूत्र मेंतहां के चैत्य वांदे ऐसे कहा है; तथा तिन की ऊर्ध्वगति पांडुकवन जो समभूतला से निनानवे (९९) हजार योजन ऊंचा है तहां तक जाने की है, ऐसे भी तिस ही सूत्र में कहा है, और यह अंजनगिरि तो चउरासी (८४) हजार योजन ऊंचा है तो तहां गये हैं उस में कोई भी बाधक नहीं है और जेठमल ने नंदीश्वरद्वीपमें चार सिद्धा. यतन लिखे हैं,परंतु अंजनगिरि चारके ऊपर चार हैं,और दधिमुख तथा रतिकर ऊपर मिलाके ५२ हैं,और पूर्वोक्त पाठमें भी ५२ ही कहे हैं, इस वास्ते जेठमल का लिखना बिलकुल असत्य है। तथा जेठमल ने लिखा है- "प्रतिमा वादी है तहां (चेइ आई वंदित्तए) ऐसा पाठ है परंतु (नमस्सइ)ऐसाशब्द नहीं है इसवास्ते प्रतिमा को प्रत्यक्ष देखी होवे तो नमस्सइ शब्द क्यों नहीं कहा ?" तिस का उत्तर-वंदा और नमस्सइ दोनों शब्दोंका भावार्थ-एक ही है इस वास्ते केवल वंदइ शब्द कहा है तिसमें कोई विरोध नहीं हैं परंतु वंदइ एक शब्द है वास्तेतहां प्रतिमावांदीही नहीं है,ऐसे कथन से जेठमल श्रीभगवती सूत्रके पाठको विराधने वाला सिद्ध होता है। : पुनः जेठमल लिखता है कि-" तहां चेइआई' शब्दकरके
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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