SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चालीसवां बोल - ६७ का दुःख दूर करने का यथासम्भव प्रयत्न करूगा | अगर मैं सच्चा राजा हू तो अपने प्राणो को होम करके भी सात ही दिन में चोर को पकड लूगा । इस प्रकार कहकर राजा ने प्रजा को आश्वासन दिया । आज ऐसे प्रजाप्रेमी नरेश बहुत कम नजर आते है जो प्रजा के दुख को अपना दुख समझकर उसे दूर करने का प्रयत्न करते हैं । प्रजाप्रिय राजा प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राण भी निछावर कर देता है । राजा ने चोर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की है यह बात चारो ओर नगर भर में फैल गई । मडूक चोर ने भी राजा की प्रतिज्ञा की बात सुनी। वह विचार करने लगा - राजा ने प्राण का भोग देकर भी मुझे पकडने की प्रतिज्ञा की है । अब मेरा बचना कठिन है । फिर भी मुझे तो राजा के पजे से बचने का ही प्रयत्न करना चाहिए । वीर पुरुष का कर्त्तव्य कि वह पराजित भले ही हो जाये मगर पुरुषार्थ का त्याग न करे । मुझे सावधानी के साथ काम करना चाहिए और पुरुषार्थ नही त्यागना चाहिए । पुरुषार्थ छोड़कर बैठ रहना कायरता है । चोर का पता लगाने के लिए राजा भेष बदलकर शहर मे निकला । इधर चोर भी अपना भेष बदलकर यह देखने के लिए निकला कि देखे, राजा क्या करता है ? चोर पैर मे पट्टी बाघकर, हाथ मे लाठी लेकर, बीमार दरिद्र की तरह शहर मे घूमने निकला । राजा ने मडूक चोर को इस भेष मे देखा । मडूक चोर की आख देखते ही राजा मन मे समझ गया कि चोर यही है । परन्तु जब तक प्रमाण
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy