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________________ ३५२-सम्यक्त्वपराक्रम (५) शास्त्रकारों ने सम्यक्त्वपराक्रम नामक अध्ययन में ७३ उपाय बतलाये हैं , इनमे से सत्तर उपायो पर विस्तार के साथ विवेचन किया जा चुका है। सड़सठवें से सत्तरवें बोल तक कषाय का त्याग करने के लिए कहा गया है । राग, द्वेष और मिथ्यात्व का त्याग किये बिना कषाय का त्याग नही हो सकता । इसलिए गौतम स्वामी, भगवान महावीर से राग-द्वेष-मिथ्यात्व के त्याग के सम्बन्ध मे प्रश्न करते हैं : मूलपाठ प्रश्न-पिज्जदोसमिच्छादसणविजएण भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर-पिज्जदोस मिच्छादसणविजएणं नाणसणधरिताराहणयाए अन्भुट्ठइ, अविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणु पुवीए अहवीसइ विह मोहणिज्ज कम्मं उग्धाएइ, पंचविह नाणावरणिज्ज, नवविह सणावरणिज्जं, पचविहं अन्तराइयं, एए तिन्नि वि कम्मसे जुगवं खवेइ, तो पच्छा अणुत्तरं कसिणं पडिपुण्ण निरावरण वितिमिर बिसुद्ध लोगालोगप्पभाव केवलवरनाणदंतणं समुप्पाडेइ, जाव सजोगी भवइ ताव इरियावहियं कम्म निबंधइ सुहफरिस दुसमयठिइय तं पढमसमए बद्ध बिइयसमये वेइय तइयसमये निज्जिण्ण, तं बद्ध पुटुंउदीरिय वेइयं निज्जिण्ण सेयाले य अकम्मं यावि भवइ ।।७१॥ शब्दार्थ प्रश्न-भगवन् ! राग-द्वेष तथा मिथ्यादर्शन पर विजय प्राप्त करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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