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________________ २६६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) करना कहां तक उचित है । शास्त्र में तो वचन का महत्व बतलाया ही है उपनिपद मे भी वचन का महत्व बतलाने हुए कहा गया है कि ‘व णी की शक्ति को नष्ट न किया जाये तो आत्मा को बहुत ही लाभ हो सकता है।' इसी अध्ययन के चौदहवें बोल मे गौतम स्वामी ने भगवान् से प्रश्न किया है कि स्तवस्तुतिमगल से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा है-स्तवस्तुतिमगल से जीव ज्ञान दर्शन और चारित्र रूप बोधिलाभ करता है। इस प्रकार वचन का समाधारण करने से अर्थात वचन का खराव कामो मे दुरुपयोग न करके, अच्छे कामो से सदुपयोग करने से मम्यक्त्व को विशुद्धि होती है । सम्यक्त्व और दर्शन-दोनो पर्यायवाची शब्द है । काया से अच्छे काम न हो सके तो भी अगर वचन को अच्छे कामो में प्रयुक्त किया जाये तो भी लाभ हो सकता है । वचन द्वारा मनुष्य के स्वभाव की परीक्षा होती है । वाणी के आधार पर मनुष्य के हृदय के भावो का अनुमान किया जा सकता है। जब साधारण मनुष्य भी वाणी से मन के भाव जान लेता है तो क्या परमात्मा वाणी से हृदय के भाव नही जानता होगा ? परमात्मा सर्वज्ञ होने के कारण सभी भाव हस्तामलकवत जानता है। अतएव अपने मन मीर वचन को खराब कामो में प्रवृत्त न करके परमात्मा के गुणगान मे ही प्रवृत्त करो । इममे तुम्हारी दृष्टि को भी शुद्धि होगी और आचरण की भी । परमात्मा के गुणगान में ही मन और वचन का उपयोग करने से प्रात्म का हित किम
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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