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________________ तिरेपनवां वोल-२४३ लोग बारीक वस्त्र पहन कर सोचते हो कि हमें कपडा सस्ता मिला, परन्तु इस बारीक वस्त्र के पीछे कितना अधिक खर्च करना पड़ता है और परिणाम स्वरूप किस प्रकार आर्तध्यान मे पडना पड़ता है, इस बात का विचार करोगे तो तुम्हे पता चलेगा कि जीवन में संयम और सादगी रखने से ही आर्तध्यान से बचाव हो सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मोह के कारण यह चार प्रकार का आर्तध्यान किया जाता है। इस प्रकार के प्रार्तध्यान को धर्मध्यान या शुक्लध्यान के द्वारा ही जोता जा सकता है । शुक्लध्यान प्रात्मविकास की उच्च श्रेणी है । मतएव अगर धर्मध्यान किया जाये तो आर्तध्यान से बचाव हो सकता है और फिर धीरे-धीरे शुक्लध्यान की स्थिति तक पहुंचा जा सकता है। धर्मध्यान किसे कहते हैं और धर्मध्यान से प्रार्तध्यान किस प्रकार दूर हो सकता है, इस विषय में कहा है: केवलिभाषित वाणी माने, कर्मनाश का उद्यम ठाने । पूरब कर्म उदय पहचाने, पुरुषाकार लोकथिति जाने । धर्मध्यान के चारो पाये, जे समझे ते मारग पाये। अगर इष्टवियोग के कारण आत्तध्यान हो तो केवलिभाषित वाणी पर विश्वास करके धर्मध्यान मे प्रवृत्ति करनी चाहिये और यदि अनिष्टसयोग के कारण आर्तध्यान हो तो कर्मों को नष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए । शास्त्रकाय का कथन है कि आर्तध्यान के प्रसग पर धमध्यान करने से कठिन बन्ध भी शिथिल पड जाता है । शरीर में व्याधि हो तो पूर्व कर्मों का स्मरण करके सोचना चाहिए किमें ही यह ध्याधि उत्पन्न की है, जो मुझे दुख क्यों मनाना
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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