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१०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) दिन एक बार का भोजन त्यागने से, पारणा के दिन एक बार का भोजन त्यागने से और उपवास के दिन दो बार का भोजन त्यागने से ही चतुर्थभक्त उपवास कहलाता है । खान पान की लालसा रोककर विधिपूर्वक उपवास करने वाला अनेक गुना लाभ प्राप्त करता है ।
हम तुम सब लोगो को सुख का ही मार्ग बतलाते है और कहते है कि सुख कुछ बाहर से नहीं आता । सुख कहा से आता है, इस सम्बन्ध मे शास्त्र मे कहा हैसुखस्य दु खस्य न कोऽपि दाता, परो ददात.ति कुबुद्धिरेषा ।
अर्थात् - अविवेकी लोग ही कहते हैं कि दूसरे ने हमें सुख या दुख दिया है । ज्ञानीजनो का कहना है कि दूसरा न सुख दे सकता है और न दु.ख ही दे सकता है । तुम भी शायद यह समझते हो कि दूसरो ने हमे अमुक दुःख दिया है, परन्तु अगर तुम अपना मन शान्त और पवित्र रखो तो कदापि नही कह सकोगे कि कोई दूसरा हमे सुख-दुख देता है। मन को शान्त और पवित्र रखने से दुख पैदा ही नही होता । अतएव अपना मन शान्त और पवित्र बनाने के लिए परमात्मा तथा तपश्चरण का शरण ग्रहण करो। अपनी आत्मा ही सुख-दुख का कर्ता और हर्ता है, ऐसा मानने से दुख भी सुख मे परिणत हो जाता है । केतुमती ने अजना को मातगृह भेज दिया था और मायके वालों ने भी अपने घर न रखकर जगल मे भेज दिया था । परन्तु अजना ने जगल में भी यही माना कि सास ने मुझ पर कितनी बडी कृपा की कि मुझे जगल मे भेज दिया और मुझे जगल मे महात्मा के दर्शन का लाभ हुआ ! इस प्रकार अजना ने अपने दुख को भी सुख रूप मे परिणत कर लिया । क्या