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२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
शब्दार्थ प्रश्न-भगवन् ! याहार वा प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-पाहार का त्याग करने में प्रात्मा जीवन की लालसा नष्ट हो जाने के कारण पाहार के अभाव मे सेद नही पाता।
व्याख्यान यह सूत्रपाठ बहुत मारपूर्ण है। इसमे महत्वपूर्ण बोधपाठ मौजद है। शास्त्र का प्रत्येक वाक्य अर्थसूचक है। यहा लाभ पर विचार करना है कि श्राहार का त्याग करने से जीव को क्या होता है ?
यह शरीर पाहार पर ही टीका हुया है। यह सही है कि शरीर को टिकाये रखने के लिए और और वरतुएं भी सहायक है, परन्तु उनमें प्रधानता पाहार की ही है । मकान या वस्त्रों के अभाव में जीवन कायम रह सकता है । अफ्रीका के एक प्रदेश के विपय में सुना जाता है कि वहां के निवासी वम्ब नही पहनते, नग्न हो रहते है । जव वस्त्र ही नहीं पहने जाते तो ग्राभूषण पहनने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। यह बात सभी समझते हैं कि मनुष्य मकान और कपदों के बिना भी जीवित रह सकता । मगर तुमने कभी सुना है कि पाहार के विना भी कोई प्राणी जीवित रह सकता है ? वारतव में जीवन कायम रखने के लिए पाहार की अनिवार्य आवश्यकता है और इसी कारण प्राण की व्याख्या करते हुए अन्नमयप्राण कह गया है।