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पैतीसवो बोल
आहारप्रत्याख्यान
वस्तुत:- अात्मा और परमात्मा एक है । आत्मा मैं ज्ञान की किसी प्रकार की कमी नही है, परन्तु उसके ज्ञान पर आवरण प्राया हुआ है । वह ज्ञानावरण क्रिया के बिना दूर नहीं हो सकता । इसीलिए शास्त्र में उसे क्रिया द्वारा नष्ट करने का उपदेश दिया गया है।
चौतीसवे बोल मे उपधि के त्याग के विषय में कहा जा चुका है । जो व्यक्ति उपधि या उपाधि का त्याग करता है वह अपनी शक्ति के अनुसार प्रहार का त्याग करता है । अत गौतम स्वामी अब भगवान महावीर से यह प्रश्न करते हैं कि आहार का त्याग करने से जीव को क्यों लाभ होता है ?
मूलपाठ प्रश्न--पाहारपच्क्खाणेण भंते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर --- आहारपच्क्खाणेणं जीवियासंसप्पोगं वोच्छिन्दइ, जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमवरेणं न संकिलिस्सइ ॥ ३५ ॥