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________________ बयालीसवां बोल-१०१ भी चलना चाहिए। साधुवेष धारण करने से क्या लाभ होता है, इस विषय मे इस तरह विचार करो कि कोई मनुष्य अन्तरग मे चाहे जैसा साधु हो, लेकिन अगर उसने साधु का वेष धारण नही किया है तो तुम उसे साधु नही मानोगे और न वन्दना ही करोगे । यह ठीक है कि केवल साधुवेष धारण करने से ही कोई साधु नही हो जाता, परन्तु निश्चय का काम निश्चय में होता है और व्यवहार का काम व्यवहार मे होता है । व्यवहार में लिग का होना आवश्यक __ माना गया है। इसी कारण गौतम स्वामी ने भगवान से यह प्रश्न पूछा है कि स्थविरकल्पी साधु का लिग धारण करने से आत्मा को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने साधुवेष धारण करने का एक लाभ तो यह बतलाया गया है कि साधु वेष धारण करने से जीवात्मा मे लघुता आती है। साधुवेष मे कैसी शक्ति है, इस विषय मे मुझे निजी अनुभव हुआ है । जब मैंने साधुदीक्षा ली तब शीतकाल था और जोरो की सर्दी पडती थी । दीक्षा लेने से पहले के दिन रात्रि के समय ऐसी सर्दी लगी थी कि खूब कपडे ओढने पर भी वह कम नही हई । उस समय मेरे मौसेरे भाई ने मुझसे कहा कल दीक्षा लेनी है और आज कडाके की सर्दी लग रही है ! तो फिर दीक्षा लेने के बाद सर्दी कैसे सहन कर सकोगे ? मैंने उत्तर दिया-'कल की बात कल देखी जाएगी। आज तो मुझे बहुत सर्दी लग रही है, मानो मेरी परीक्षा लेने आई है ।' दूसरे दिन मैंने दीक्षा ली । उस रात को नदी के किनारे बने हुए एक मन्दिर मे हमने निवास किया । मन्दिर का
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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