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________________ सत्ताईसवा बोल-६६ कहता है कि उसे खाये बिना मेरा चल ही नहीं सकता। अब बतलाइए, ऐसे रोगी का उपचार डाक्टर क्या खाक करेगा ? इसी प्रकार कर्मरूपी रोग को मिटाने के लिए जो व्यक्ति संयमरूपी पथ्य द्वारा, आते हुए कर्मो को नही रोकता वल्कि आस्रव मे ही पड़ा रहना चाहता है, उस व्यक्ति के लिए वर्तमान कर्मों को नष्ट करने की दवा बतलाना व्यर्थ ही है । हा, जो भद्र पुरुष सयमरूपी पथ्य का पालन करता है और इस प्रकार आते कर्मों को अटकाता है, उसके लिए शास्त्रकारो ने सचित कर्मो को नष्ट करने की तपरूपी दवा बतलाई है। सयम स्वीकार करने वालो को सचित कर्मो को नाश करने के लिए तप करना आवश्यक है । अतएव अब तप के विषय मे प्रश्न किया गया है. - मूलपाठ प्रश्न - तवेणं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर -तवेण जीवे ! वोदाणं जणयइ । शब्दार्थ प्रश्न - भगवन् ! तप करने से जीव को क्या लाभ । होता है ? उत्तर- तप करने से व्यवदान अर्थात् पूर्व कर्मों का क्षय होता है।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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