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________________ छब्बीसवां बोल-६७ शरीर को फल क्यो भोगना पडता ? आत्मा और शरीर एक दृष्टि से भिन्न-भिन्न हैं और दूसरो दृष्टि से अभिन्न भी हैं । अतएव कर्म दोनो के द्वारा कृत हैं । ऐसी स्थिति में शरीर को साधन समझ कर उसके द्वारा आत्मा का कल्याण करना चाहिए । जो शरीर को सावन समझेगा वही सयम स्वीकार कर उसका फल प्राप्त कर सकेगा जिस वस्तु के प्रति ममता का त्याग कर दिया जाता है, उस वस्तु का सयम करना कहलाता है । अत बाह्य वस्तुओ के प्रति जितने परिमाण मे ममता त्यागोगे, उतने ही परिमाण मे आत्मा का कल्याण साध सकोगे । भगवान् ने सयम का फल निष्कर्म अवस्था की प्रप्ति बतलाया है । कर्म रहित अवस्था प्राप्त करना अपने ही हाथ मे है । सयम किसी भी प्रकार दुःखप्रद नही वरन् आनन्दप्रद है और परलोक मे भी आनन्ददायक है।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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