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________________ तेतीसवां बोल-२०५ करते हो । आजकल वस्तुओ का भोग और नाश तो होता दिखाई देता है परन्तु दान में बहुत कम उपयोग होता है । इस जमाने में बहुत बेकारी है, ऐसा कहा जाता है, परन्तु वस्तुओ का भोग और नाश करने मे क्या कुछ कमी रखी जाती है ? कमो तो वस्तुओ के दान मे ही आई है । यहा एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । वह यह कि वस्तुओ का भोग और नाश करने से तो अन्त मे पश्चात्ताप ही पल्ले पडेगा परन्तु दान मे वस्तुओ का उपयोग करने से पश्चात्ताप का अवसर नहीं आएगा । अत. एव प्राप्त सम्पत्ति का भोग और नाश करके ही दुरुपयोग मत करो, उस सम्पत्ति का दान देकर सदुपयोग करना सीखो। कुछ लोग तो दान करने मे भी पाप मानते हैं उन लोगो की मान्यता यह है कि हम जिनको दान देते हैं, वह दान लेने वाले अगर कोई पाप कर्म करें तो उनके सब कर्मों का पाप हमे लगता है इत्यादि । मारवाड मे ऐसी मान्यता वाले लोग हैं । इन लोगो के बीच भ्रमण करके मैंने उनकी इस दुर्भावना को दूर करने का प्रयत्न भी किया था और उन्हे समझाया था कि उनकी यह मान्यता ठीक नहीं है। दान मे विवेक रखने की आवश्यकता तो है, मगर दान मे एकान्त पाप मानना गलत है। लोगो को दान मे पाप मानने की बात बहुत जल्दी पसन्द आ जाती है, क्योकि ऐसा मानने से गाठ का कुछ जाता नही और धर्म भी हो जाता है । ऐसी बात जल्दी पसन्द आना स्वाभाविक है। दान मे विवेक रखना ठीक है मगर एकान्त पाप मानना ठीक नही-है । बीज नष्ट हो जाने के डर से बोना ही छोड बैठना कोई
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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