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________________ १८२-सभ्यक्त्वपराक्रम (३) कूका की बात सुनकर रामचन्द्र गुरु बोले - अगर वास्तव मे यही बात है और तुमने सत्य की प्रतिज्ञा ली है तो तुम सरकार के पास जाकर अपना अपराध स्वीकार कर __ लो और निरपराध लोगो के प्राण बचाओ । रामचन्द्र गुरु का कथन सुनकर कूका ने कहा- मैं ___ अपना अपराध तो स्वीकार कर लंगा मगर अपने साथियो के नाम नही बताऊंगा क्योकि मैने उन्हे वचन दिया है कि अगर मैं पकडा गया तो भी उनका नाम नही बताऊँगा। रामचन्द्र गुरु बोले - तुम सरकार को यही उत्तर देना कि मैंने और मेरे साथियो ने यह दुष्कृत किया है, मगर मैं अपने साथियो के नाम बताने की स्थिति मे नही हु । हाँ, इतना अवश्य कह सकता हू कि इस समय जिन लोगो को अपराधी समझकर मौत की सजा बोली गई है, वे लोग निर्दोष हैं।' कूका ने गुरु से पूछा- तो क्या मैं स्वय ही सरकार के प स चला जाऊँ ? गुरु ने कहा-अगर तुमने सत्य बात को स्वीकार करने का साहस है तो फिर सरकार के सामने अपना अपराध स्वीकार करने मे क्या बाधा है ? कूका पुलिस-प्रधान के पास जा पहुचा। उसने अपना अपराध स्वीकार किया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के अनेक प्रलोभन देने पर भी उसने अपने साथियों के नाम प्रकट नही किये । पुलिस ने यहा तक कहा कि अगर तू अपने साथियो के नाम प्रकट कर दे तो तू फांसी की सजा से बच जायगा । मगर कूका अपने निश्चय से विचलित नही हुआ। उसने कहा-आप मुझे फांसी पर चढा सकते हैं, मगर मैं अपने साथियो के नाम जाहिर नही
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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