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बत्तीसवाँ बोल-१८१
डाला। यह समाचार जब रामचन्द्र गुरु के पास पहुचा तो उन्होने ऐसा कृत्य करने वालो की निंदा की और ऐसा करना कायरता है, यह घोषणा की। र त्रि के समय निद्रावस्था मे किसी को मार डालना वीरता नही, कायरता हो है ।
हिन्दू और मुसलमानो के बीच जो क्लेश हा सो कचहरी तक पहुचा । पुलिस ने कितने ही आदमियो की धरपकड की । मगर जो लोग पकडे गये थे, उनमे बहुत से निरपराध थे । सरकार को यह विश्वास हो गया था कि हिन्दुओ ने मुसलमान कसाइयो को मारा है । इस विश्वास के कारण न्यायाधीश ने सभी पकडे जाने वालो को प्राणदड की सजा दे डाली । जव रामचन्द्र गुरु के कानो तक यह बात पहुची तो उन्होने कहा- यह तो बहुत बुरा हुया । बेचारे निर्दोष मनुष्य मारे जाएंगे। जिन्होने मुसलमानो को मारा है वही लोग अगर अपना अपराध स्वीकार कर लें तो निर्दोप लोगो के प्राण बच सकते है । अपना अपराध स्वीकार कर लेना भी वीरता ही है। रामचन्द्र गुरु का यह कथन कूका जाट ने सुनः । कूका ने गुरु से कहा - अपने मुझे सत्य बोलने की शिक्षा और प्रतिज्ञा दी है। अगर कोई मुझसे पूछे तो मुझे सत्य ही बोलना चाहिए, यह बात मैं पसन्द करता है। इसी कारण अपराधी होन पर भी मैं कुछ कहता-बोलता नहीं हू । अब आप कहते है कि अपना अपराध स्वीकार करना भी सत्य और वोरता है, तो मैं आपके समक्ष स्वीकार करता है कि जो लोग पकड़े गये हैं और जिन्हे मौत की सजा मिली है उन्होने कसाइयो की हत्या नही की। कसाईयो की हत्या मैंन और मेरे साथियो ने की है। इस समय जो लोग पकडे गये हैं वे वेचारे निर्दोष हैं ।