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१६८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
प्रयत्न करना चाहिए कि भविष्य में फिर पापकार्य न हो सके । इस विषय मे तुमसे और कुछ न बन सके तो जब माथे पर दुख आ पडे तो कम से कम इतना अवश्य मानो कि जो कुछ होता है, भले के लिए ही होता है ।
कहने का आशय यह है कि जो दुख होने वाला है, वह तो होगा हो । परन्तु उस दु.ख के समय जो कुछ होता है सो भले के लिए ही होता है, ऐसा समझ कर दु.ख मे भी सुख मानो । इस प्रकार दुख के समय सुख समझने से आठ कर्मों की गाठ ढीली होती है । दु.ख भोगते समय हाय-तोबा मचाने से अधिक दुख होता है । अतएव दुख भोगते समय घबराना उचित नही है । चित्त को प्रसन्न रखकर परमात्मा का शरण ग्रहण करने से आत्मा का कल्याण अवश्य हो सकता है ।