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१५४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
. सिंह का बच्चा रहे तो अच्छा ही है । यह सोचकर वह बच्चे को दूध पिलाने लगा। शेर का बच्चा भेडो के ससर्ग से अपने आपको भेड ही समझने लगा। वह भेडो के समान ही रहने लगा और वैसी ही चेष्टाएँ करने लगा । किसी समय शेर की गर्जना सुन पडती तो वह बच्चा भी भयभीत होकर भेडो के साथ भागता । हालाकि सिंह का बच्चा स्वय गर्जना करने वाला और भेडो को भगाने वाला था, लेकिन अपना स्वरूप भूल जाने के कारण ही वह भेडो की तरह भयभीत होकर भागता फिरता था ।
एक दिन भेडो के झुन्ड के साथ वह बच्चा जगल मे गया था। वहाँ सिंह ने गर्जना की। सिंह की गर्जना सुनकर सब भेड भागी । सिंह का बच्चा भी साथ ही भागा । भागते-भागते उसने विचार किया - जिस सिंह का इतना बहुत डर लगता है, देखे तो सही वह सिंह कैसा है ? इस प्रकार,विकार कर वह थोडी देर रुका । उसने सिह की ओर देखा और फिर भेडो के साथ भागने लगा। परन्तु सिह का स्वरूप उसके हृदय मे अंकित हो गया। वह सोचने लगासिंह कितना जबर्दस्त है । उसका मुख कितना विकराल और उसकी जीभ कैसी लाल है । और उसकी गर्जना कितनी भयकर है । ऐसे भयानक सिंह से डरना स्वाभाविक है ।
किसी दूसरे दिन वह शेर को बच्चा भेडो के साथ नदी में पानी पीने गया। बकरी और भेड पानी गन्दा करके नही पीती, उन्हे धीरे से निर्मल पानी पीना सुहाता है । भेडो के साथ शेर का बच्चा भी पानी पीने लगा । पनी पीवे समय उसका प्रतिबिम्ब पानी मे पडा। अपना प्रति