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________________ १४८-सम्यक्त्वपराक्रम (३) को अपनी बनाने मे राम बाधक थे । इसी प्रकार मणिरथ युगवाहु का सगा भाई था, फिर भी विषयवासना के कारण क्रुद्ध होकर उसने युगवाहु को मार डाला था। अतएव जिस सगति से क्रोध और कामवासना की उत्पत्ति होती हो, उस सगति का त्याग कर देना चाहिए। __कुसगति मे अनेक बुराइया है । वडे-बडे मनुष्य भी सग के कारण खराब हो जाते हैं । इसी कारण नि.सग बनने के लिए कहा गया है। नि सग बनने के लिए अप्रतिवद्ध होना आवश्यक है । आत्मा को अप्रतिवद्ध बनना ही चाहिए किन्तु आत्मा मे दुर्गुणो की ऐसी वासना घर कर बैठी है कि उस वासना के कारण आत्मा अपनी हानि जानते हुए भी हानिकारक कार्यों मे ही फंसता जाता है । इसी कारण भक्तजन कहते है 'हे प्रभो । मुझ सरीखा मूर्ख और कौन होगा? कोई कह सकता है कि तुम मूर्ख नही हो, मूर्ख तो मछली और पतग हैं जो अपने आप ही जाल मे जा फंसते है और जलकर मर जाते हैं । परन्तु यह कथन भूल भरा है । मछली और पतग भी मेरे समान मूर्ख नही हैं । मेरी मूर्खता तो इनकी मूर्वता से भी बहुत बडी है। अगर मछली को पता हो कि इस आटे के पीछे काटा है और वह काटा मेरे लिए प्राणघातक है तो मछली उस काटे मे कदापि न फंसे और अपने प्राणो का नाश न करे । परन्तु मछली तो उसे अपना भक्ष्य समझ कर ही खाने जाती है और रसलोलुपता के कारण फस जाती है । इसी प्रकार अगर पतग को पता होता कि दीपक मे अग्नि है और उस अग्नि से मैं मर जाऊँगा तो वह दीपक पर मोहित नही होता । परन्तु पतग दीपक को अग्निरूप नहीं समझता । वह तो सुन्दर
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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