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________________ उनतीसवां बोल-१३१ वस्त्रो के लिए द्रौपदी माता को नग्न किया गया है, उन्हे हम छू भी कसे सकत हैं ? इस प्रकार कह कर तुम उन वस्त्रो का उपयोग नहीं करोगे । मगर तुम्हारो मातृभूमि को हानि पहुचाने वाले वस्त्र तुम्हे दिये जाते हैं, उन्हे लेने का तुमने त्याग किया है ? तुमने हिंसामूलक वस्त्रो का और चमडे का त्याग नहीं किया, इसका एक प्रधान कारण यही है कि अभी तक तुम्हारे हृदय मे अनुकम्पा का भाव हो उदित नही हुआ है । अगर सच्ची अनुकम्पा तुम्हारे हृदय मे उत्पन्न हो जाती तो ऐपो हिमामूलक वस्तुओ का तुम स्पर्श तक न करते । __ भगवान् कहते हैं कि हृदय मे अनुकम्पा का भाव पैदा होने से अनुद्धतता अर्थात् निरभिमानता अती है । अनुकपा से हृदय नम्र वन जाता है और नम्र हृदय में अभिमान उत्पन्न नहीं होता । अनुकम्पाशील मनुष्य मे ' मैं वडा हु, मैं यह काम कैसे करू ? ' इस प्रकार का मिथ्या अभिमान नहीं होता। अनुकम्पा वाला मनुष्य दूसरे के दु.ख को अपना ही दुःख मानता है और दूसरे का दुख मिटना अपना दुख मिटना समझता है। वही सच्ची अनुकम्पा है जिसमे अभिमान या लालसा को स्थान न हो । जहा किसी भी प्रकार की लालसा होती है वहाँ विशुद्ध अनुकम्पा नही ।। आजकल कितने ही लोग अनुकम्पा के नाम पर दान तो करते हैं परन्तु साथ ही साथ अपने आप को दानी कहलाने के लिए अखबारो मे, बडे-बडे अक्षरो मे, अपने दान की घोषणा छरवाते हैं । क्या यह अनुकम्पा और दान है? वास्तव मे देखा जाये तो सच्ची अनुकम्पा न होने के कारण
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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