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________________ १३०-सम्यक्त्वपराक्रम (३) हृदय में सच्ची दया हो तो क्या तुम ऐसी वस्तुओ का व्यवहार कर सकते हो जिनके ख तिर पशुओ की हत्या की जाती है ? तुम यो तो गाय को नही मारोगे परन्तु तुम्हारे सामने गाय के चमडे के बने सुन्दर और मुलायम बूट रसे जाएँ अथवा गाय की चर्बी वाले कपडे तुम्हे दिये ज एं तो उन्हे उपयोग करने के लिए लोगे या नही ? प्रत्यक्ष मे तो तुम गाय को माता कहोगे, मगर यह नही देखोगे कि तुम्हारे लिए गाय म ता की हालत कितनी भयकर हो रही है ? क्या कभी तुमने सोचा है कि तुम जो मुलायम बूट पहनने हो वे किसके चमडे के बनते है ? तुम कह सकते हो कि जूता पहने बिना काम नही चलता, मगर भारतवर्ष मे पहले चमडे के खातिर कभी भी पशुओ का घात नही किया जाता था। जो पशु स्वाभाविक मौत से मर जाते थे, उन्ही के चमडे के जूते बनाए जाते थे । आजकल तो विशेष तौर से चमडे के लिए हो पशु मारे जाते हैं । इतना ही नहीं, वरन् चमडे को सुन्दर और मुतायम बनाने के उद्देश्य से पशुओ की बड़ी ही निर्दयता के साथ हत्या की जाती है । क्या तुम लोगो ने ऐसे सुन्दर और मुलायम चमडे की बनी चीजो का त्याग किया है ? अगर त्याग नहीं किया तो क्या तुम्हारे दिल मे पशुयो के प्रति दया का भाव है ? कल्पना करो, तुम्हारे सामने द्रौपदी को नग्न किया जाये और उसके शरीर पर से उतारे हुए वस्त्र, कोट, कमीज वनवाने के लिए तुम्हे दिये जाए तो क्या तुम उन वस्त्रो को हाथ भी लगाओगे ? तुम उस समय यही कहोगे कि जिन
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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