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________________ ६६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) छोडता तो फिर दुर्योधन की करतूत देखकर मैं अपना स्वभाव कैसे छोड दू ? दुर्योधन हमारे प्रति चाहे जैसा व्यवहार करे परन्तु मैं अपना क्षमाभाव नही त्याग सकता। जैसे भीम को गदा का और अर्जुन को गाडीव का बल है, उसी प्रकार मुझमें क्षमा का बल है । यद्यपि गदा और गांडीव का प्रयोग जैसे प्रत्यक्ष दिखाई देता है वैसा क्षमा का प्रयोग प्रत्यक्ष दिखाई नही देता और न उसका तात्कालिक फल ही दृष्टिगोचर होता है । परन्तु मुझे अपनी क्षमा पर विश्वास है । मैं विश्वासपूर्वक मानता हूँ कि जैसे दीमक वृक्ष को खोखला कर देती है उसी प्रकार मेरी क्षमा ने दुर्योधन को खोखला बना दिया है । दीमक के द्वारा खोखला होने के पश्चात वृक्ष चाहे आधी से गिरे या बरसात से, मगर उसे खोखला बनाने वाली चीज तो दीमक ही है। इसी प्रकार दुर्योधन का पतन चाहे गदा से हो या गाडीव से, लेकिन उसे नि सत्व बनाने वाली मेरी क्षमा ही है। अगर मेरी क्षमा उसे खोखला न कर सकी तो गदा या गॉडीव का उस पर कोई प्रभाव नही पड सकता । द्रौपदी ने कहा- धर्म की यह तराजू अद्भुत है । आपके कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि आप प्रत्येक कार्य धर्म की तुला पर तोल कर ही करते हैं। युधिष्ठिर-साधारण चीजे तोलने के काटे मे कुछ पासग भी रहता है, लेकिन जवाहिर या हीरा, माणिक तोलने के कांटे में पचमात्र भी पासग नही चल सकता । इसी प्रकार धर्म का काटा, बिना किसी अन्तर के, ठीक निर्णय दे देता है । मै अपने धर्मकाटे मे तनिक भी अन्तर नहीं आने देता। मैं अपना अपकार करने वाले का भी उपकार ही करूंगा
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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