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________________ - पांचवां बोल-३७ देश भर मे, चहुँ ओर फैले हुए इस रोग के कारण ही आज विदेशी लोग भारतीयो पर अधिक भरोसा नहीं करते । इतिहास के अवलोकन से प्रतीत होता है कि भारत में बहुत से ऐसे लोग भी हो गये हैं, जिन्होने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए देशद्रोह तक किया है। अगर ऐसा हुआ तो इसके लिए शास्त्र दोष के पात्र नही है । शास्त्र तो स्पष्ट घोषणा करते है कि सरल बनो, कपट न करो। अपराध के पाप से कपट का पाप कम नहीं वरन् ज्यादा ही है । सरलता धारण करने से और अपराध को अपराध मानने से कितना लाभ होता है, इस बात के अनेक उदाहरण शास्त्र मे तथा इतिहास मे लिखे है। सती चदनवाला और मृगावती का उदाहरण बहुत ही बोधप्रद है। सती चन्दनबाला महान् सती मानी जाती है । वह समस्त सतियो मे महतो सती थी। इसी प्रकार मृगावती भी वडो सती मानी गई है। इन दोनो सतियो मे पारस्परिक प्रेम भी खूब घना था। फिर भी एक दिन, अनजान मे जब सती मृगावती अकाल मे स्थान से बाहर रह गई तो सतीशिरोमणि चन्दनवाला ने उनसे कहा- 'आप सरीग्वी बड़ी सती को अकाल मे बाहर रहना शोभा नहीं देता।' इस प्रकार चन्दनबाला ने मृगावती को मीठा उपालम्भ दिया । मृगावती सोचने लगी-'आज मुझे उपालम्भ सहना पडा!' यद्यपि मृगावती कह सकती थी कि मैं जान-बूझकर बाहर नही रही । मगर उनमे ऐसा विनय था, ऐसो नम्रता थी कि ' वह ऐसा कह नही सकी । वह विनयपूर्वक खडी रहकर विचार करने लगी- 'मुझ मे कितना अज्ञान है कि मेरे कारण मेरी गुराणीजो को इतना कष्ट हुआ । मेरी अपूर्णता और
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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