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________________ पांचवां बोल-२६ दोनो प्रकार की आलोचनाएँ क्रमश चौकन्नी और छकन्नी कहलाती है। आचार्य यदि स्थविर अर्थात् वृद्ध हो तो किसी दूसरे साधु को पास रखने की आवश्यकता नही होती। अगर आचार्य तरुण हो तो पास मे एक साधु रखना आवश्यक है। इस प्रकार दो कान आलोचना करने वाली स्त्री के, दो कान साध्वी के, दो क न आचार्य के और दो कान साधु के होने से आलोचना आठकन्नी कहलाती है। इस प्रकार की आलोचना गुप्त अपराध के लिए को जाती है । जो अपराध हो उसकी आलोचना प्रकट मे हो करनी चाहिए । शास्त्र मे कहा है- दसवै प्रायश्चित्त के अधिकारी को राजो या सेठ वगैरह के पास जाकर कहना चाहिए कि मुझसे अमुक प्रकार का अपराध हुआ है। उसकी शुद्धि के लिए अमुक दिन आलोचना होगी । आप कृपा करके अवश्य पधारे । सब लोगो से इस प्रकार कह भर और नियत समय पर उन सबके आ जाने पर अपने मस्तक पर पगडी रखकर गृहस्थ की भाति यह प्रकट करे कि साध अवस्था मे मुझसे अमुक अपराध हो गया है । इस भाति प्रकट मे आलोचना करे और फिर विधिवत् शुद्ध हो। तात्पर्य यह है कि जो दोष प्रकट हो उसकी आलोचना भी प्रकट में ही करनी चाहिए । अगर किसी श्राविका को साध्वी के पास ही आलोचना करनी हो तो वह चौकन्नी (चतु कर्णी) भी हो सकती है । लेकिन अगर साधु वहा मौजूद हो तो साध के पास ही आलोचना करनी चाहिए और इस दशा मे आलोचना छकन्नी होनी चाहिए । हाँ, आचार्य तरुण हो तो एक साधु को भी साथ रखना चाहिए और इस दशा में आलोचना आठकर्णी होगी ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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