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________________ पांचवां बोल-२५ देता है। रानी चेलना धन्य हैं, जिन्हे ऐसा सुन्दर और वीर पति मिला है । हम भी सयम का पालन करती हैं । इस सयम का फल ऐसा सुन्दर पति मिलने के सिवाय और क्या हो सकता है ? अतएव हमारी यही कामना है कि हमारे सयम के फलस्वरूप आगामो भव मे हमे ऐसा ही सुन्दर पति प्राप्त हो ।' इसी प्रकार रानी चेलना को देखकर कुछ साधु भी जजाल में फंस गये । वे मन मे कहने लगे-'तप और सयम का फल ऐसी सुन्दरी मिलने के अतिरिक्त और क्या होना चाहिए ? मोक्ष किसने देखा है ? अतएव तप और सयम का अगर कुछ फल होता हो तो हमे ऐसी ही सुन्दरी का लाभ हो। ऐसी सुन्दरी स्त्री मिलना ही मुक्ति मिलना है।' इस प्रकार कुछ साधुओ ने तथा कुछ साध्वियो ने अपनी-अपनी धर्मक्रिया का फल क्रमश चेलना जैसी स्त्री और श्रेणिक जैसे पति की प्राप्ति होना चाहा । साधु-साध्वियों के मन का यह भाव और तो कोई नही जान सका, पर सर्वज्ञ भगवान से क्या छिप सकता था ? भगवान् ने विचार किया- इस तरह का निदान करना ठीक नही है । मगर इन साधुओ और साध्वियो ने मोह के प्रताप से यह निदान किया है। अलबत्ता कुलीन होने के कारण वे अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित्त लेने मे विलम्ब नही करेगे । वीतराग भगवान् तो उपदेश देते है । कोई माने तो ठीक है । भगवान् किसी पर किसी प्रकार का दबाव नही डालते। भगवान ने उन साधुओ और साध्वियो को अपने पास बुलाया । उन सब के आने पर भगवान् ने सहसा यह नही कहा कि तुमने ऐसा निदान क्यो किया है ? वरन् भगवान् ने उन्हे निदान के नौ भेद और उनसे होने वाली
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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